Monday 24 February 2014

बार-बार

सत्य का गूंगापन एक बार
झूठ का धपोल शंख
बजता है बार-बार।
एक दिन कोई अच्छा सा
बुरे दिन महीनो बजो
रहते देह मन-प्राणों पर सवार।
एक जगह कहीं कोई फूल खिला
रंग और गंध से
आकर्षित करता निहाल
बाकी जगह कूड़े कतवार
करते रहते कि हम जायें
उनके पास
होता तो यही है बहुधा अनेक बार।
आदमी को औरत का इंतज़ार
औरत को मर्दों का इंतज़ार
दोनों जबतक होते हैं पास-पास
ख़त्म हो चूका होता है दोनों के
मन का इंतज़ार ,
यही हुआ है, होता रहेगा
कसकते हुए जीना
बार-बार।   

2 comments:

  1. कल 06/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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