ढकेले रहेंगे हम विपत्तियों को
जैसे कूड़े को अपने द्वार से बाहर कर
कही दूर कर आते हैं झाड़ू से हम
पर फिर वे आ जाते हैं जैसे
वैसे आफते आही जाती हैं
घर में, दरवाजे पर
दिल में और देह में।
आदमी -आदमी के काम आता है
इसीलिए कि हर आदमी के
घर और बाहर विपत्तियाँ आती हैं
सब अपनी-अपनी विपत्ति में पड़े लोग
दूसरों की विपत्ति में
ढाढस ऐसे बांधते हैं
जैसे उन्हें ढाढस बध गयी हो
मुकम्मल।
हम जानते हैं सब
पर जानना कितने काम का होता है
ऐसे अवसर पर।
हमें न जानने जैसा
होना और बरतना
कितना सहारा देता है
विपत्तियों में।
जैसे कूड़े को अपने द्वार से बाहर कर
कही दूर कर आते हैं झाड़ू से हम
पर फिर वे आ जाते हैं जैसे
वैसे आफते आही जाती हैं
घर में, दरवाजे पर
दिल में और देह में।
आदमी -आदमी के काम आता है
इसीलिए कि हर आदमी के
घर और बाहर विपत्तियाँ आती हैं
सब अपनी-अपनी विपत्ति में पड़े लोग
दूसरों की विपत्ति में
ढाढस ऐसे बांधते हैं
जैसे उन्हें ढाढस बध गयी हो
मुकम्मल।
हम जानते हैं सब
पर जानना कितने काम का होता है
ऐसे अवसर पर।
हमें न जानने जैसा
होना और बरतना
कितना सहारा देता है
विपत्तियों में।
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