Wednesday 19 March 2014

होली बीत गई

जैसे सब बीतता है 
वैसे बीत गई 
एक शब्द उठा 
रंगीन फ़व्वारो पर 
रखे बैलून की तरह 
रात आते-आते 
मशीन बंद हो गई
न रंग है, न फव्वारा 
न वह बैलून 
होली मिठाइयाँ और गुजियों के 
पच गए अवसाद के स्वाद की तरह 
खत्म हो गई। 
मिल आए लोग जिनसे मिलना था 
मिल लिए लोग जो मिलने आए थे। 
समय के माथे पर 
लगा अबीर झर गया 
होली बीत गयी। 
एस एम एस पद लिखे गए 
हार्दिक शुभकामनाएँ बाजी हो गई 
उन्हें लोगो ने अपने मोबाइल से 
डिलीट कर दिया 
अब अगले साल आएगी होली 
एहसास, सुदूर समन्दर में 
चला गया.… लगा 
चुप है शहर 
उजाड़ लग रहा है गाँव 
कल अखबार भी नहीं आयेगा 
कि तुरंत याद दिला दे होली का 
अगले दिन आयेगा 
तब तक दिलचस्पी कम हो जायेगी। 
बच्चे और जवान 
दिन भर होली खेलकर 
गाकर, बजाकर, नाचकर 
बेहद थककर 
सो गये 
होली बीत गई 
होली की तरह 
जिंदगी बीत जायेगी 
एक दिन 
न मन का फव्वारा रहेगा 
न तन का बैलून 
मशीन बंद हो जायेगी 
पानी ख़त्म हो जायेगा। 
बचे हुए लोग 
बचे रह जायेंगे 
और कुछ लोग 
होली की तरह बीत जायेंगे 
चुप एक शब्द है 
हर त्योहार में 
जो उनके अवसान के 
समय आता है 
और कहता है 
मुझे देखो और पहचानो
और बीत जाने की प्रतीक्षा करो।   

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