Monday 3 March 2014

साहित्य

बड़े-बड़े लोगो ने 
कहीं बड़ी-बड़ी बातें 
प्रेम अभी और करना है 
दुनिया को और अधिक बनाना है बेहतर 
प्रकृति को बचाये रखना है 
सुन्दर स्त्रियों का सौंदर्य 
और अधिक चिन्हित होना है 
और कर्म नायक 
उपजाने हैं प्रबन्धकाव्यों की खेती में 
नायिकाओं को और अधिक बनाना है 
प्रगतिशील
यथार्थवादी उपन्यासों में 
देखना है कि 
आम आदमी के पास 
अपनी सहानभूति की 
दस्तक कैसे पहुंचे,
यह एक खुला रास्ता है 
जिसमे विचारों के लिए 
थोड़ी ज्यादे जगह देनी हैं 
मस्तिष्क में। 
बड़े लोग चले गए 
माइक में बोल कर पहले 
कुछ छोटे लोग 
बटोरते रहे 
फेकें हुए प्लास्टिक के गिलास 
समेटते रहे दरियाँ 
इकठ्ठा कर लादते रहे रिक्शे पर 
सब उठ गया 
साहित्यिक जमावड़े का रेला 
फिर वह जगह रह गई 
शायद अगली गोष्ठी की प्रतीक्षा में,
एक और व्यक्ति वहाँ अभी भी था 
सोचते हुए 
एक कवि के मन की तरह 
कुछ भी तो नहीं हुआ 
कहीं कुछ दुनिया में 
जो जैसे था 
वैसे का वैसे 
इतिहास के बहार 
कोई शब्द नहीं मिल रहा था 
कि दर्ज कर लिया जाय 
और रस निर्मित की  रिक्तता में 
उन्हें वैसे रख दिया जाय कि 
साहित्य सगुण हो जाय 
भले ही कवि का मन रहे निर्गुण। 
और हाँ 
इस कविता का साहित्य सोचते हुए 
सड़क पर जा रहा था कवि 
और गली में मुड़ते ही 
कुत्ते ज्यादा भोंकते हुए उसे फिर मिल गए थे। 
 

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