Tuesday 4 March 2014

कविता नही

इच्छा इतनी नहीं कि 
किसी से भिक्षा मांगू 
घमंड भी इतना नहीं कि 
किसी की महानता के सामने 
सिर झुका सकूँ 
अब मेरे जैसे औसत 
आदमी के लिए 
कहाँ है दुनिया में गुंजाइश 
मुझे तो लगने लगा है कि 
अब कविताओं में भी 
मेरे जैसों की कोई गुंजाइश नहीं रही। 
फिर भी आप के लिए नहीं 
अपने लिए लिखता हूँ कविता 
बिना अंकित किये 
एक अलिखित ख़त की तरह 
चांदनी को 
प्रिया की स्मृति को 
और दोस्तों की 
जिंदगी को। 
ये चीजे कविता के रास्ते से नहीं 
मेरे दिल के रास्ते से आते हैं। 


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