Thursday 1 June 2017

सत्य :

अंततः सभी चले जाएंगे
यह मुहावरा बोलने वालों को 
इतना बोध नहीं रहता कि 
कि कम जाते हैं 
ज्यादा लोग रह जाते हैं
प्रलय किताबों में पूर्ण होता है
प्रलय भूगोल में
हमेशा खंड प्रलय रहता है
और बचे हुए लोग
दुःख, संवेदना, आंसू, श्रद्धा
और स्मृति के फूल चढ़ाते
कैंडिल जलाते
दिवंगत आत्माओं के प्रति
अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते
ग़मगीन उदास होते हैं
एक मातमी धुन प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष बजती है
पर जिंदगी चलती रहती है
दूध दही की दूकान
और जिलेबी की दूकान
सिर्फ कर्फ्यू लगने पर बंद रहती है
सब्जियां बिकती हैं
बच्चे स्कूल जाते हैं
स्त्रियाँ सुंदर बने रहने का प्रयास करती हैं
बच्चे खेलते रहते हैं
कुत्ते दौड़ते-भागते रहते हैं
जमीन में पतिंगे
पेड़ पर गिलहरियाँ
चढ़ती उतरती रहती हैं
यानी की वह सब
जो वर्णित हो रहा है वह भी और
वह भी जो वर्णित नहीं हो रहा है
घटता रहता है,
हाँ मौत अनंत क्रिया का एक नया
खाता खोलती है
जिंदगी का बैंक तो लेन-देन करते
चलता ही रहता है |
(अनंत मिश्र)

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