Thursday 1 June 2017

दिनचर्या

दिनांत में सूर्य के घोड़े चले गए
टापों की आवाज धीमी हो गई
पेड़ पौधे कहीं नहीं गए
पर चुप हो गएँ 
सुबह जिन पक्षियों की आवाज आई थी
वह कहाँ गईं
पता नहीं
रात आने को है
घर में आए लोग
इधर-उधर कही बैठे लेटे
बच्चे ऊधम मचाते
अभी वक्त हो जाएगा
खाना बन जाने का
खाने का
और लोगों के सोने थोड़ा पढ़ने
या टी.वी. देखने का
या पूरी तरह सो जाने का
नींद एक दवा है
जीने के रोग की
सपने अभ्यास हैं
मरने के बाद भी बचे रहने के ।
(अनंत मिश्र)

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