और शाम गहरा जाती है
विदा समय में
विदा द्वार पर खड़ा पेड़
मानो कुछ कहता
और जैसे वह प्रश्न पूछता
फिर कब आओगे,
वह अपनी जड़ छोड़ नहीं सकता
मैं पर लौट-लौट सकता हूँ ।
पेड़ एक भाषा बुनता है
मौन अँधेरा गहरे-गहरे
ऐसे-ऐसे प्रश्न करता है
जिसके उत्तर दे पाना
अत्यंत असंभव ।
कभी कहो यदि किसी स्वजन से
लौटूंगा
तो क्या यह तय है ?
पेड़ जानता नहीं
किंतु सब इसे जानते हैं ।
विदा समय में
विदा द्वार पर खड़ा पेड़
मानो कुछ कहता
और जैसे वह प्रश्न पूछता
फिर कब आओगे,
वह अपनी जड़ छोड़ नहीं सकता
मैं पर लौट-लौट सकता हूँ ।
पेड़ एक भाषा बुनता है
मौन अँधेरा गहरे-गहरे
ऐसे-ऐसे प्रश्न करता है
जिसके उत्तर दे पाना
अत्यंत असंभव ।
कभी कहो यदि किसी स्वजन से
लौटूंगा
तो क्या यह तय है ?
पेड़ जानता नहीं
किंतु सब इसे जानते हैं ।
(अनंत मिश्र)
दिल्ली से लौटते वक्त
25/7/15
दिल्ली से लौटते वक्त
25/7/15
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