Thursday 1 June 2017

और शाम गहरा जाती है

और शाम गहरा जाती है
विदा समय में
विदा द्वार पर खड़ा पेड़
मानो कुछ कहता
और जैसे वह प्रश्न पूछता
फिर कब आओगे,
वह अपनी जड़ छोड़ नहीं सकता
मैं पर लौट-लौट सकता हूँ ।
पेड़ एक भाषा बुनता है
मौन अँधेरा गहरे-गहरे
ऐसे-ऐसे प्रश्न करता है
जिसके उत्तर दे पाना
अत्यंत असंभव ।
कभी कहो यदि किसी स्वजन से
लौटूंगा
तो क्या यह तय है ?
पेड़ जानता नहीं
किंतु सब इसे जानते हैं ।
(अनंत मिश्र)
दिल्ली से लौटते वक्त
25/7/15

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