Thursday 1 June 2017

सतत यात्रा

अचानक उठ जाता हूँ
डूबते हुए गोया
निकल आया हूँ
इस कमरे से उस कमरे जाता हूँ
खोजता हूँ एक शब्द
जो मेरी अकुलाहट को भाषा दे दे
अचानक खिड़की से दिखता है खुला आसमान
आसमान के पास पहुंची पेड़ की डालियाँ और पत्तियाँ
सुनता हूँ सड़क पर चलती गाड़ियों की आवाज
फेरी वालों की पुकार
और मेरा खोया हुआ शब्द
फिर गायब हो जाता है
खोजता हूँ शब्द
और गायब होता जाता है शब्द
शायद यही मैं कर रहा हूँ
कई जन्मों से
और आप समझते हैं
कि मैं कविता लिख रहा हूँ
शताब्दियों की पाटी पर ।
(अनंत मिश्र) 

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