इच्छा इतनी नहीं कि
किसी से भिक्षा मांगू
घमंड भी इतना नहीं कि
किसी की महानता के सामने
सिर झुका सकूँ
अब मेरे जैसे औसत
आदमी के लिए
कहाँ है दुनिया में गुंजाइश
मुझे तो लगने लगा है कि
अब कविताओं में भी
मेरे जैसों की कोई गुंजाइश नहीं रही।
फिर भी आप के लिए नहीं
अपने लिए लिखता हूँ कविता
बिना अंकित किये
एक अलिखित ख़त की तरह
चांदनी को
प्रिया की स्मृति को
और दोस्तों की
जिंदगी को।
ये चीजे कविता के रास्ते से नहीं
मेरे दिल के रास्ते से आते हैं।
किसी से भिक्षा मांगू
घमंड भी इतना नहीं कि
किसी की महानता के सामने
सिर झुका सकूँ
अब मेरे जैसे औसत
आदमी के लिए
कहाँ है दुनिया में गुंजाइश
मुझे तो लगने लगा है कि
अब कविताओं में भी
मेरे जैसों की कोई गुंजाइश नहीं रही।
फिर भी आप के लिए नहीं
अपने लिए लिखता हूँ कविता
बिना अंकित किये
एक अलिखित ख़त की तरह
चांदनी को
प्रिया की स्मृति को
और दोस्तों की
जिंदगी को।
ये चीजे कविता के रास्ते से नहीं
मेरे दिल के रास्ते से आते हैं।
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