१
धुन रहा है काल प्रतिपल
तदापि अपनी राह चलता
मैं उठाये बोझ कंधो पर
व्यर्थ की ही सही मंजिल तक
जा रहा हूँ।
हल करूंगा जो रुकावट बन खड़ी है
समस्याएँ जानता हूँ,
आदमी का रथ बड़ा है,
पर हवा का रुख
बखेड़े सा खड़ा है।
२
जिंदगी भी क्या कि जिसका
सिर गायब है
बीच में मैं क्या
सभी उत्तर नदारत हैं
भूख, निद्रा, सुख-दुखों का
सिलसिला है
जो मुझे भी अन्य लोगों की तरह
शायद विरासत में मिला है।
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