बाहर निकलो मेरे दोस्त
समय धूप हवा पानी सा
शहरो व गॉँवो के पेट में
समाया है ,
भूख प्यास तृष्णा या कामना
कितने ही रूपों में
यहाँ वहाँ मैंने उसे
मुँह बाये खड़ा पाया है।
क्या करोगे तुम
डँसने को प्रयत्न्शील नाग का
क्या करोगे इस
लगी हुई चौतरफा आग का ?
समय धूप हवा पानी सा
शहरो व गॉँवो के पेट में
समाया है ,
भूख प्यास तृष्णा या कामना
कितने ही रूपों में
यहाँ वहाँ मैंने उसे
मुँह बाये खड़ा पाया है।
क्या करोगे तुम
डँसने को प्रयत्न्शील नाग का
क्या करोगे इस
लगी हुई चौतरफा आग का ?