Tuesday 28 January 2014

शिवराधा

जैसे ही उसने कहा
आग
वह जल गई
मैं कुछ देर तक तापता रहा
वह राख में बदल गई
बची हुई राख के कुछ कण
मैंने मस्तक पे लगाया
आज सचमुच मैंने
शिवराधा का
सम्पूर्ण फल पाया। 

फूलों के विषय में

कुछ लोग टटके फूलों की तरह खड़े हैं
शेष मुरझाये फूलों की तरह हिले हैं ,
मैंने टहनी से कहा
पत्तो से कान में मंच की तरह
बताया
इन्हे धारण किये रहो ,
जो खिलें हैं
वे भी कुछ हिले हैं
पर मुझे फूलों का मुरझाना अच्छा नहीं लगता
बागवानी का विशेष शौक नहीं
वक्त बागवानी का नहीं है
खेती-बारी का है,
उससे फसलें होती हैं
और वे काटी भी जाती हैं
हर फूलों पर ध्यान जाता है
गंध का क्या ठिकाना
अभी है
अभी हवा के साथ उड़ जायेगी।
पर फूल तो हमेशा हैं
खिलने, मुरझाने, और
तोड़े जाने, गिर जाने के पूर्व
हमेशा और हमेशा।  

पत्नी की स्मृति

तब मैं तुम्हे याद करता हूँ
जब कोई याद नहीं आता है 
पत्नी की याद 
भला कोई करता है ?
पत्नी घर में हो 
तो घर उसे याद नहीं करता 
उसी को धारण करता है 
घर दीवारों से 
भुजाओं के घेरे बनाता है क्या 
या पत्नी घर की भुजाओं में 
स्वतः चली आती है 
या कि उसी में नित्य विद्यमान रहती है। 
मैं घर की  तरह 
पत्नी को याद करता हूँ 
जो अपनी गृहस्थी की चिन्ता में 
अपने बच्चों के साथ 
अपनी आँखों और इच्छाओं के साथ 
झगड़ते हुए घर में नहीं है 
और घर उसकी प्रतीक्षा कर रहा है।