जीवन की सांध्य वेला में
जिंदगी का हिसाब लगाते हुए
कुछ याद नहीं आता
ऐसा जो दर्ज करने लायक हो,
किसी के काम आया कि नहीं आया
वे तो वही जानते होंगे
पर अपने लिए जुगाड़ने में
इज्जत की रोटी
पूरी जिंदगी खर्च हो गयी
चाहता तो यही था
कि सभी को इज्जत की रोटी
जिंदगी भर मिले
और मरने पर
श्रद्धांजलि
पर ऐसा करना मेरे वश में न था।
अब अपने आस-पास देखता हूँ
किसी को दोष दिए बिना
तो इतना भर कह सकता हूँ
कोई बहुत अच्छा न लगा
यहाँ तक कि जिससे प्रेम किया वह भी
जिनसे खिन्न हुआ वह भी
दुश्मनी तो किसी से नहीं पाली
क्यों कि दुश्मन मेरे कोई स्थाई रूप से बना ही नहीं
सभी मित्र थे
यहाँ तक कि पेड़ और पौधे भी
जिनसे कई मामलों में
बात-चीत कर सका था
जिन जीवों की जाने-अनजाने
मुझसे हत्या हुई
उनसे क्षमा मागने के अतिरिक्त
मैं क्या कर सकता हूँ
कुछ चाहिए नहीं
बस यह दुनिया
जीतनी भी अच्छी हो सके हो जाय
तो चैन से मर सकूंगा
इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना ,यदि वह सचमुच हो।
जिंदगी का हिसाब लगाते हुए
कुछ याद नहीं आता
ऐसा जो दर्ज करने लायक हो,
किसी के काम आया कि नहीं आया
वे तो वही जानते होंगे
पर अपने लिए जुगाड़ने में
इज्जत की रोटी
पूरी जिंदगी खर्च हो गयी
चाहता तो यही था
कि सभी को इज्जत की रोटी
जिंदगी भर मिले
और मरने पर
श्रद्धांजलि
पर ऐसा करना मेरे वश में न था।
अब अपने आस-पास देखता हूँ
किसी को दोष दिए बिना
तो इतना भर कह सकता हूँ
कोई बहुत अच्छा न लगा
यहाँ तक कि जिससे प्रेम किया वह भी
जिनसे खिन्न हुआ वह भी
दुश्मनी तो किसी से नहीं पाली
क्यों कि दुश्मन मेरे कोई स्थाई रूप से बना ही नहीं
सभी मित्र थे
यहाँ तक कि पेड़ और पौधे भी
जिनसे कई मामलों में
बात-चीत कर सका था
जिन जीवों की जाने-अनजाने
मुझसे हत्या हुई
उनसे क्षमा मागने के अतिरिक्त
मैं क्या कर सकता हूँ
कुछ चाहिए नहीं
बस यह दुनिया
जीतनी भी अच्छी हो सके हो जाय
तो चैन से मर सकूंगा
इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना ,यदि वह सचमुच हो।