Tuesday 4 March 2014

यह कोई प्रार्थना भी नहीं है

जीवन की सांध्य वेला में 
जिंदगी का हिसाब लगाते हुए 
कुछ याद नहीं आता 
ऐसा जो दर्ज करने लायक हो,
किसी के काम आया कि नहीं आया 
वे तो वही जानते होंगे 
पर अपने लिए जुगाड़ने में 
इज्जत की रोटी 
पूरी जिंदगी खर्च हो गयी 
चाहता तो यही था 
कि सभी को इज्जत की रोटी 
जिंदगी भर मिले 
और मरने पर 
श्रद्धांजलि 
पर ऐसा करना मेरे वश में न था। 
अब अपने आस-पास देखता हूँ 
किसी को दोष दिए बिना 
तो इतना भर कह सकता हूँ 
कोई बहुत अच्छा न लगा 
यहाँ तक कि जिससे प्रेम किया वह भी 
जिनसे खिन्न हुआ वह भी 
दुश्मनी तो किसी से नहीं पाली 
क्यों कि दुश्मन मेरे कोई स्थाई रूप से बना ही नहीं 
सभी मित्र थे 
यहाँ तक कि पेड़ और पौधे भी 
जिनसे कई मामलों में 
बात-चीत कर सका था 
जिन जीवों की जाने-अनजाने 
मुझसे हत्या हुई 
उनसे क्षमा मागने के अतिरिक्त 
मैं क्या कर सकता हूँ 
कुछ चाहिए नहीं 
बस यह दुनिया 
जीतनी भी अच्छी हो सके हो जाय 
तो चैन से मर सकूंगा 
इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना ,यदि वह सचमुच हो।  

एक लम्बी लड़ाई

कोई नहीं सुनना चाहता सत्य 
जैसे मौत की खबर सुनकर 
अपनी मौत के होने के सच 
को टालते हुए जीवन में 
शरीक हो जाता है आदमी। 
अन्याय के प्रतिकार का 
समर्थन वह तभी तक करता है 
जबतक उससे होने वाले अन्याय 
के प्रतिकार की चर्चा न की  जाय। 
प्रेम,सहानभूति और करुणा 
सब अपने लिए चाहते हैं 
पर देने के मामले में 
समय, सुविधा और 
न्यूनतम हानि की कीमत पर। 
दुनिया को बदलने की 
इच्छा वाला आदमी 
अपने को बदलने के 
प्रायः विरुद्ध 
और यह एक ऐसा युद्ध है 
जिसे शताब्दियों तक 
लड़ा जाना है 
और इसके हथियारों की 
खोज भी इसी समाज को करना है। 

कविता नही

इच्छा इतनी नहीं कि 
किसी से भिक्षा मांगू 
घमंड भी इतना नहीं कि 
किसी की महानता के सामने 
सिर झुका सकूँ 
अब मेरे जैसे औसत 
आदमी के लिए 
कहाँ है दुनिया में गुंजाइश 
मुझे तो लगने लगा है कि 
अब कविताओं में भी 
मेरे जैसों की कोई गुंजाइश नहीं रही। 
फिर भी आप के लिए नहीं 
अपने लिए लिखता हूँ कविता 
बिना अंकित किये 
एक अलिखित ख़त की तरह 
चांदनी को 
प्रिया की स्मृति को 
और दोस्तों की 
जिंदगी को। 
ये चीजे कविता के रास्ते से नहीं 
मेरे दिल के रास्ते से आते हैं। 


कहाँ से ले आऊँ

कहने के लिए बहुत कुछ नहीं है 
हल होगी मूलभूत समस्याएं 
जबसे 
चलने के लिए था मेरे सपनों का रास्ता 
पर वह पूरी न हो सके 
क्यों कि जुड़े थे दूसरों के साथ 
वे मेरे नहीं हो सकते थे 
इसलिए हो गयी चुनौतियों के बीच,
बड़ा मुश्किल है 
जीना और मुकम्मल बने रहना
क्यों कि  
मुश्किल होती जा रही है नौकरी 
मुश्किल होता जा रहा है घर 
मुश्किल होते जा रहे हैं परिजन 
मुश्किल होती जिंदगी की 
असलियत 
बहुत मुश्किल है मोल पाना 
रोज-रोज का टटमजार 
और शायद सबसे ज्यादा 
मुश्किल है ज्ञान की सीमा 
जिस पर सबसे ज्यादा किया था 
विश्वास 
अपने सपने की प्रेमिका की तरह 
वह भी तोड़ गया मेरा दिल 
अब कहाँ से ले आऊँ जीने का विश्वास।