Sunday 23 February 2014

एक नाजुक सवाल


दिल का क्या हाल है मत पूछ 
हाल बेहाल है मत पूछ ,
वक्त को तोड़ रहा रोटी सा 
साथ में दाल नही मत पूछ ,
इश्क़ में क्या मिला किया उनसे 
एक नाजुक सवाल मत पूछ। 

आम आदमी के लिए गोष्ठी में

कठिन समय में 
कठिन बातों के हल में 
बड़े और वरिष्ठ लोगों की 
बात-चीत में 
कठिनतर है कुछ सामान्य आदमी के लिए पाना। 
वे लोग आम आदमी पर 
एक विचार गोष्ठी में 
सेवारत थे। 
आम आदमी अपने घर के लिए चिंतित था 
बेटे की बेरोजगारी से परेशान 
बिटिया के ब्याह की  चिंता 
और भैंस के बीमार होने की 
आसान सी दिखने वाली समस्या से 
ग्रस्त ,
कठिन लोग और कठिन समाज के 
बीच उनके लिए हल खोज जाना था ,
किसान के लिए खेती की कीमत 
मजदूर के लिए मेहनत की  कीमत 
यह उनके जिंदगी के व्याकरण से 
बाहर की चीजे निकली ,
वे उसे अंदर लाना चाहते थें 
उनके सदृश्य होने में 
कोई जरुरत नहीं थी ,
पर वे नहीं खोज सके कोई हल 
और गोष्ठी 
अचानक समाप्त हो गयी 
अगली गोष्ठी तक।  

दूध छोड़ने वाले वैष्णव जन

मिल गए अचानक 
सत्संगी 
कहने लगे 
मैंने छोड़ दिया भोजन में 
दूध का सेवन 
और दूध से बने भोजनो का स्वाद 
लहसुन प्याज तो पहले से 
छोड़ दिया था ,
वे वैष्णव थे 
वैष्णव होने का उन्हें गर्व था ,
मैंने उनसे कहा 
कब छोड़ेंगे 
इर्ष्या और द्वेष 
लोभ और हिंसा 
कब छोड़ेंगे 
दूसरे का घर देखकर 
कुढ़ना 
और कब छोड़ेंगे 
एक छोटा सा विश्वास 
जो कभी-कभी छोड़ते हैं 
अपने से गरीब आदमी को देखकर ,
वे कुछ तैश में आ गये 
मैंने उनका संग 
थोड़ी देर तक के लिए छोड़ दिया। 
हाय मैंने तो कोशिश की थी 
पर कहाँ मिल पाया 
मुझे सत्संग। 

कितना है प्यार

रात आने से पहले 
बंद करना नहीं है दरवाजे 
क्यों कि कोई आ सकता है 
उसके आने की प्रतीक्षा है। 
नींद आने के पहले 
नहीं सोना है
क्यों कि कोई आ सकता है 
पलकों में स्वप्न बनकर 
उसके आने की प्रतीक्षा है। 
भोर होने के पहले 
नहीं जागना है 
क्यों कि रात सोती है 
साथ में 
उसकी नींद में खलल होगी। 
कितनी प्रतीक्षाएँ और 
कितने हैं सरोकार 
तय करना कठिन है 
कितना है प्यार ? 

हम भरोसेमंद लोग हैं

कैसे भरोसा छोड़ दे 
जब तक जिन्दा हैं 
जिन्दा हैं क्यों कि पृथ्वी 
हमें घेरे है 
और जब भी हम 
अपने दरबे से निकलते हैं 
सूरज बिना कीमत चुकाए 
रौशनी देता है 
हवाएँ हमारे नथुनों में 
श्वास भरती हैं 
और पेड़ों की छाया में 
धूप- दिये में 
हम बैठ जाते हैं। 
नदियां जल दे देती हैं 
और समुद्र नमक 
हमारी चूल्हे की आग 
जलकर 
हमारी रोटी पका देती है 
हमारे हाथ 
हमारे निवालो को 
हमारे मुह में 
डाल देते हैं 
हम बहुत कुछ 
बिना धन के पाते हैं। 
कोई नहीं होता जब पास 
तो सड़क के कुत्ते 
जो मुहल्ले में हैं 
हमें पहचान लेते हैं 
और पास जाने पर 
वे दुम हिलाते हैं। 
हम अभी भी जिन्दा हैं 
इस शताब्दी की खौफ से बाहर 
हमें गरीब कहा जाता है 
कुछ अमीरों की तुलना में 
हमें मालूम तो ज्यादा नही है 
पर हमारे बिना उनका भी कुछ नहीं चलता 
हम उनके कपडे धोते 
बर्तन मांजते 
और उनके बच्चों की 
परवरिश के काफी हद तक 
हिस्सेदार हैं,
हमारे भरोसे पर जब इतना 
कुछ चल रहा है 
तो हम कैसे भरोसा छोड़ दें 
किसी के कहने से 
हमें कोई शिकायत है तो 
सिर्फ इतनी कि वे हमसे काम तो लें 
पर इस काम को 
पापकर्म कहना छोड़ दें।