कैसे भरोसा छोड़ दे
जब तक जिन्दा हैं
जिन्दा हैं क्यों कि पृथ्वी
हमें घेरे है
और जब भी हम
अपने दरबे से निकलते हैं
सूरज बिना कीमत चुकाए
रौशनी देता है
हवाएँ हमारे नथुनों में
श्वास भरती हैं
और पेड़ों की छाया में
धूप- दिये में
हम बैठ जाते हैं।
नदियां जल दे देती हैं
और समुद्र नमक
हमारी चूल्हे की आग
जलकर
हमारी रोटी पका देती है
हमारे हाथ
हमारे निवालो को
हमारे मुह में
डाल देते हैं
हम बहुत कुछ
बिना धन के पाते हैं।
कोई नहीं होता जब पास
तो सड़क के कुत्ते
जो मुहल्ले में हैं
हमें पहचान लेते हैं
और पास जाने पर
वे दुम हिलाते हैं।
हम अभी भी जिन्दा हैं
इस शताब्दी की खौफ से बाहर
हमें गरीब कहा जाता है
कुछ अमीरों की तुलना में
हमें मालूम तो ज्यादा नही है
पर हमारे बिना उनका भी कुछ नहीं चलता
हम उनके कपडे धोते
बर्तन मांजते
और उनके बच्चों की
परवरिश के काफी हद तक
हिस्सेदार हैं,
हमारे भरोसे पर जब इतना
कुछ चल रहा है
तो हम कैसे भरोसा छोड़ दें
किसी के कहने से
हमें कोई शिकायत है तो
सिर्फ इतनी कि वे हमसे काम तो लें
पर इस काम को
पापकर्म कहना छोड़ दें।
जब तक जिन्दा हैं
जिन्दा हैं क्यों कि पृथ्वी
हमें घेरे है
और जब भी हम
अपने दरबे से निकलते हैं
सूरज बिना कीमत चुकाए
रौशनी देता है
हवाएँ हमारे नथुनों में
श्वास भरती हैं
और पेड़ों की छाया में
धूप- दिये में
हम बैठ जाते हैं।
नदियां जल दे देती हैं
और समुद्र नमक
हमारी चूल्हे की आग
जलकर
हमारी रोटी पका देती है
हमारे हाथ
हमारे निवालो को
हमारे मुह में
डाल देते हैं
हम बहुत कुछ
बिना धन के पाते हैं।
कोई नहीं होता जब पास
तो सड़क के कुत्ते
जो मुहल्ले में हैं
हमें पहचान लेते हैं
और पास जाने पर
वे दुम हिलाते हैं।
हम अभी भी जिन्दा हैं
इस शताब्दी की खौफ से बाहर
हमें गरीब कहा जाता है
कुछ अमीरों की तुलना में
हमें मालूम तो ज्यादा नही है
पर हमारे बिना उनका भी कुछ नहीं चलता
हम उनके कपडे धोते
बर्तन मांजते
और उनके बच्चों की
परवरिश के काफी हद तक
हिस्सेदार हैं,
हमारे भरोसे पर जब इतना
कुछ चल रहा है
तो हम कैसे भरोसा छोड़ दें
किसी के कहने से
हमें कोई शिकायत है तो
सिर्फ इतनी कि वे हमसे काम तो लें
पर इस काम को
पापकर्म कहना छोड़ दें।
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