Monday 17 February 2014

नयन

टंगे हैं नयन दो 
तुम्हारे इन प्राणों में 
याद की यह सूरत 
तस्वीर सी टंगी है। 

नये वर्ष की शुभकामना

करुणा की कोख से जनमे 
नये इसवी वर्ष 
दुनिया के लिए लाना 
अपने पिता के थोड़े से गुण 
मन की विनम्र ममता 
प्राणियों के लिए 
संगीतमय सुबह 
और उदासी सहने की शक्ति-
हर शाम। 
थोड़ी रोशनी 
थोडा खुलापन 
थोडा प्यार 
थोड़ी महक 
तुम्हारे पास बहुत कुछ है 
पर थोड़े से लोगों के लिए ही नहीं 
सब के लिए लाना 
कुछ न कुछ 
हो सके तो बहुत कुछ 
सर्वे भवन्तु सुखिनः 
सम्पूर्ण शुभकामना। 

रोशनी

रोशनी उतनी नहीं कि 
अंधों को दिखे 
अँधेरा उतना नहीं कि 
आँखों को अंधा कर दे। 

घृणा

प्यार की दुश्वारी अब बहुत 
झेल ली 
आओ अब घृणा करें ,
घृणा करे ऐसे सब लोगों से 
जो केवल अपने को 
करते हैं प्यार। 
घृणा एक शाश्वत 
हथियार है 
लड़ने का 
घृणा एक ऊँची मशाल है 
राह देखने की। 

सावन की हरियाली

अच्छा-अच्छा खा लिया 
अच्छा-अच्छा पहन लिया 
बचा-खुचा 
फटा-चिटा छोड़ दिया 
बचे हुए लोगों के लिए 
अच्छे थे लोग। 
बचे हुए लोगों ने 
लूट-पाट कर के 
छीन-झपट करके 
पा लिया, खा लिया 
फिर भी कुछ 
बचे हुए लोग 
बचे रह गए 
आशा है 
आगे भी बचे रहेंगे। 
मानवता पावन है 
सदियों से चल रही 
महिमामय जीवन में 
हरियाली सावन है। 

मेरे बच्चों

सुन्दर औरतें
अपनी सुन्दरताएं बेच रही हैं
और अच्छे गवैये अपना गला।
पहलवान अपने चट्ठे पर
उठा रहे हैं पहाड़
और पेट से निकले बच्चे
पीठ पर लादे हैं
शताब्दियों का कूड़ा यानी बस्ता।
दलाल
अपनी रोटी में नहीं
दलाली में स्वाद पा रहा है
और बदमाश
बस्ती में खैर के खिलाफ खड्गहस्त हैं
एक ठीकरा
खरबों की जिंदगी का गीत
दुनिया के टेपरिकॉर्डर पर
नही चढ़ता है ,
कभी रील ही उतार देता है ,
नदियों में चैन नहीं
पहाड़ों में मौन नहीं
वृक्ष फल बेचतें हैं
और पक्षी
मुनीमों की तरह रखते हैं हिसाब-किताब ,
मेरे समय का सूर्य
ए. सी. के बिना नहीं उगता ,
और रात रानी
महक देने के पूर्व
मुस्कान के सौदे करती है ,
मैं कहाँ हूँ
किस तबेले में ,
मेरे बच्चों तुम्हे यह दुनिया
सौपकर जाने के पूर्व
असलियत बयान कर रहा हूँ ,
किसी गलतफहमी में मत रहना ,
मैं तुम्हे वसीयत में जो
देने जा रहा हूँ
वह एक नर्क है
इसे अपना घर समझना। 

सत्य है शरीर

सत्य है शरीर 
न कपड़ा न लत्ता 
न बम्बई न कलकत्ता 
न न्यूयार्क
न वाशिंगटन 
न हवा सा मन 
न मोटर सा पर्यटन। 
सत्य है हाथ पाँव 
आँख, कान, नाक
चेहरा और दिल 
न विमान न टीवी 
न कम्प्यूटर 
न फूल, न गंध 
सत्य है जड़ 
बाद में बनता है तना 
यह समझ में तुम्हे आये 
तो समझो आदमी बना। 
  

सौदागर

उन्होंने अपना सामान अपने से 
झोले से निकाला 
और लोगों को दिखाना शुरू किया ,
यह रहा साबुन 
इससे नहायें ,
यह रहा भोजन 
इसे आप खायें ,
यह रहा घर 
ऐसा बनाये ,
ये रही मोटर 
इसमें आये जाये ,
जनता ने पूछा 
कब हम इसे पाये ?
उन्हों ने कहा 
बस आप लोग 
कीमत चुकायें।