Monday 17 February 2014

मेरे बच्चों

सुन्दर औरतें
अपनी सुन्दरताएं बेच रही हैं
और अच्छे गवैये अपना गला।
पहलवान अपने चट्ठे पर
उठा रहे हैं पहाड़
और पेट से निकले बच्चे
पीठ पर लादे हैं
शताब्दियों का कूड़ा यानी बस्ता।
दलाल
अपनी रोटी में नहीं
दलाली में स्वाद पा रहा है
और बदमाश
बस्ती में खैर के खिलाफ खड्गहस्त हैं
एक ठीकरा
खरबों की जिंदगी का गीत
दुनिया के टेपरिकॉर्डर पर
नही चढ़ता है ,
कभी रील ही उतार देता है ,
नदियों में चैन नहीं
पहाड़ों में मौन नहीं
वृक्ष फल बेचतें हैं
और पक्षी
मुनीमों की तरह रखते हैं हिसाब-किताब ,
मेरे समय का सूर्य
ए. सी. के बिना नहीं उगता ,
और रात रानी
महक देने के पूर्व
मुस्कान के सौदे करती है ,
मैं कहाँ हूँ
किस तबेले में ,
मेरे बच्चों तुम्हे यह दुनिया
सौपकर जाने के पूर्व
असलियत बयान कर रहा हूँ ,
किसी गलतफहमी में मत रहना ,
मैं तुम्हे वसीयत में जो
देने जा रहा हूँ
वह एक नर्क है
इसे अपना घर समझना। 

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