Thursday 30 January 2014

साथ में होना

साथ में होना 
तुम्हारे 
नयन सुख है 
प्रान सुख है 
फूल खिला है। 
साथ में होना 
तुम्हारे
मिलन सुख है 
प्रणय सुख है 
फूल झरना है। 
साथ में होना 
तुम्हारे 
परम सुख है
विगत दुख है 
दीप जलना है।   

छोटी कविताएँ

१ 
धुन रहा है काल प्रतिपल 
तदापि अपनी राह चलता 
मैं उठाये बोझ कंधो पर 
व्यर्थ की ही सही मंजिल तक 
जा रहा हूँ। 
हल करूंगा जो रुकावट बन खड़ी है 
समस्याएँ जानता हूँ,
आदमी का रथ बड़ा है,
पर हवा का रुख 
बखेड़े सा खड़ा है। 

२ 
जिंदगी भी क्या कि जिसका 
सिर गायब है 
बीच में मैं क्या 
सभी उत्तर नदारत हैं 
भूख, निद्रा, सुख-दुखों का 
सिलसिला है 
जो मुझे भी अन्य लोगों की तरह 
शायद विरासत में मिला है। 

मनोरोग के बरक्स मैं

मन नहीं लगता
चिकित्साविदों की दृष्टि में
यह मानस रोग है,
कारण, निवारण करना चाहिए
पर अपने हाथ में कारण भी तो नहीं
वस्तुओं के रूप में लोग नहीं हैं
कि उन्हें अपने हिसाब से धर दिया जाय
हिटलर मैं हो नहीं सकता
कठेस धार्मिक होने से रहा,
अब बची कविता
शब्दों का शस्त्र संभाले
चला जा रहा हूँ
शाम भी होती जा रही है,
रोशनी किसी काम नहीं आ रही है।
                       
                               ( ६/११/९० )