Tuesday 4 March 2014

कहाँ से ले आऊँ

कहने के लिए बहुत कुछ नहीं है 
हल होगी मूलभूत समस्याएं 
जबसे 
चलने के लिए था मेरे सपनों का रास्ता 
पर वह पूरी न हो सके 
क्यों कि जुड़े थे दूसरों के साथ 
वे मेरे नहीं हो सकते थे 
इसलिए हो गयी चुनौतियों के बीच,
बड़ा मुश्किल है 
जीना और मुकम्मल बने रहना
क्यों कि  
मुश्किल होती जा रही है नौकरी 
मुश्किल होता जा रहा है घर 
मुश्किल होते जा रहे हैं परिजन 
मुश्किल होती जिंदगी की 
असलियत 
बहुत मुश्किल है मोल पाना 
रोज-रोज का टटमजार 
और शायद सबसे ज्यादा 
मुश्किल है ज्ञान की सीमा 
जिस पर सबसे ज्यादा किया था 
विश्वास 
अपने सपने की प्रेमिका की तरह 
वह भी तोड़ गया मेरा दिल 
अब कहाँ से ले आऊँ जीने का विश्वास। 

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