Monday 3 March 2014

अखबारी आदमी

वह चीखता ऐसे है 
जैसे छप रहा हो 
और जब हँसता है 
तो उसे मशीन से 
अखबार की तरह 
लद-लद गिरते देखा जा सकता है ,
वह इकठ्ठा होता है 
अपने वजूद में बंडल का बंडल 
सबसे आँख लड़ाती बेहया 
औरत की तरह 
वह इतना प्रसिद्द होता है कि 
दिन भर में ही 
पूरा-पूरा 
फ़ैल जाता है 
आबादी पर ,
अगले दिन वह फिर 
हंसेगा, चीखेगा, गायेगा 
फर्ज करेगा 
और दोहरायेगा, घोसणा करेगा 
आदमी अखबारी है 
अखबार में छपा रहना चाहिए 
उसका प्यार। 

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