Monday 3 February 2014

अव्याकरण

न कोई इच्छा है 
न आकांक्षा 
न प्रेम 
न प्रतीक्षा 
पर अपरचित सा तुम्हारा 
मौन रहना 
सालता है। 
तुम हजारो मील मुझसे दूर रहकर क्या करोगी 
एक क्षण भी मिलोगी तो 
निपट मेरा कहीं होना 
गहन तुमको कहीं बिठा देगा 
मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना 
सिवा इसके 
तुम मुझे भी देखकर 
सामान्य रहना सीख लो 
हमारे लिए इतना 
और कर दो 
जिस तरह तुम रह लिया करती हो खुश-खुश 
नहीं मिलने पर 
उस तरह 
तुम देख कर भी खुश रहा करो। 

No comments:

Post a Comment