Monday 3 February 2014

देखिये

देखिये यह रात 
कैसे बीतती है 
दिन बिताना नही पड़ता 
रात के संग 
बात वैसी नही होती। 
देखिये यह लाश है 
इसे ढोना बहुत मुश्किल है 
जिंदगी के संग 
वैसी बात प्रायः नही होती। 
देखिये 
यह बात 
दर्शन की नहीं 
रोटी-नमक की है 
गजल, गीतो की नहीं 
इसको न ले और बातों की तरह 
और बातों की तरह 
यह बात शायद नही। 

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