पीछा नहीं छोड़ती इच्छाएँ
चाहे हम मर जायें
इसीलिए शायद
हम जनमते हैं बार-बार।
शाम होने पर
घने वृक्षों के साथ
जब रात की पत्तियां
हिलती हैं
तो पूछता हूँ
पेड़ों की जड़ों के पास जाकर
तुम्हे क्या सताती थी
इच्छाएँ
पूर्व जन्म में
क्या कोई जड़ इच्छा थी तुम्हारी
कि तुम जड़ हो गए।
पेड़ बोलते नहीं
लौट आता हूँ
अपनी माँद में
सुबह उठकर
टहलने जब निकलता हूँ
एक-एक चिड़िया से
एक-एक पेड़ से
एक-एक कुत्ते से
एक-एक आदमी से
गोया कि
दिख गए हर जीव से जंतु से
एक ही प्रश्न करता हूँ
और कबतक तुम
जनमते मरते रहोगे
इसी तरह
पीढ़ी दर पीढ़ी
प्रश्न जितना अमोघ होता है
उत्तर उतना कहाँ होता है अमोघ।
चाहे हम मर जायें
इसीलिए शायद
हम जनमते हैं बार-बार।
शाम होने पर
घने वृक्षों के साथ
जब रात की पत्तियां
हिलती हैं
तो पूछता हूँ
पेड़ों की जड़ों के पास जाकर
तुम्हे क्या सताती थी
इच्छाएँ
पूर्व जन्म में
क्या कोई जड़ इच्छा थी तुम्हारी
कि तुम जड़ हो गए।
पेड़ बोलते नहीं
लौट आता हूँ
अपनी माँद में
सुबह उठकर
टहलने जब निकलता हूँ
एक-एक चिड़िया से
एक-एक पेड़ से
एक-एक कुत्ते से
एक-एक आदमी से
गोया कि
दिख गए हर जीव से जंतु से
एक ही प्रश्न करता हूँ
और कबतक तुम
जनमते मरते रहोगे
इसी तरह
पीढ़ी दर पीढ़ी
प्रश्न जितना अमोघ होता है
उत्तर उतना कहाँ होता है अमोघ।
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