Friday 31 January 2014

प्रार्थना

भोर हुई तो उगी प्रार्थना 
अब न करूंगा कभी शिकायत 
सब तो ईश्वर ही हैं, सबमें दोषों का दर्शन 
उचित नहीं है, केवल निज दोषों का दर्शन 
बहुत-बहुत है। 
किन्तु सुबह की किरणों में ही 
ऎसी कुछ मादकता होती 
भूल गया संकल्प 
और अनथक प्रपंच का सार हो गया 
दुनिया में रहते-रहते
मैं दुनिया का ही यार हो गया। 
तुम मेरे प्रभु ; भीतर जागृत 
औघर दानी 
मेरा भी उपकार करो  
मेरी ऐसी चित्त-दशा कर दो अपनी सी 
सबको प्यार करो। 

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