भोर हुई तो उगी प्रार्थना
अब न करूंगा कभी शिकायत
सब तो ईश्वर ही हैं, सबमें दोषों का दर्शन
उचित नहीं है, केवल निज दोषों का दर्शन
बहुत-बहुत है।
किन्तु सुबह की किरणों में ही
ऎसी कुछ मादकता होती
भूल गया संकल्प
और अनथक प्रपंच का सार हो गया
दुनिया में रहते-रहते
मैं दुनिया का ही यार हो गया।
तुम मेरे प्रभु ; भीतर जागृत
औघर दानी
मेरा भी उपकार करो
मेरी ऐसी चित्त-दशा कर दो अपनी सी
सबको प्यार करो।
अब न करूंगा कभी शिकायत
सब तो ईश्वर ही हैं, सबमें दोषों का दर्शन
उचित नहीं है, केवल निज दोषों का दर्शन
बहुत-बहुत है।
किन्तु सुबह की किरणों में ही
ऎसी कुछ मादकता होती
भूल गया संकल्प
और अनथक प्रपंच का सार हो गया
दुनिया में रहते-रहते
मैं दुनिया का ही यार हो गया।
तुम मेरे प्रभु ; भीतर जागृत
औघर दानी
मेरा भी उपकार करो
मेरी ऐसी चित्त-दशा कर दो अपनी सी
सबको प्यार करो।
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