स्वयं सिद्ध कुछ नहीं
न आग
न पानी
न पेड़
न फल
न लोटा
न गिलास
यहाँ तक कि जीना और मरना
कुछ भी स्वयं सिद्ध नहीं है
मरने के लिए भी जीना पड़ता है
और आग को जलाना
पानी को पीना
फल को खाना
लोटे को उठाना
और गिलास को ओठों से लगाना पड़ता है ,
तुम कहते हो
ईश्वर स्वयं सिद्ध है
उसे भी धरती पर आना पड़ता है
या आकाश में रहना पड़ता है
हवाओं को प्रेरित
सूर्य को प्रकाशित
और पर्वतों, जंगलों और
जाने कितने प्राणियों
वनस्पतियों को रवाना पड़ता है ,
सब लगे रहते हैं
जीवन का व्याकरण
कभी स्वयं सिद्ध नहीं होता।
न आग
न पानी
न पेड़
न फल
न लोटा
न गिलास
यहाँ तक कि जीना और मरना
कुछ भी स्वयं सिद्ध नहीं है
मरने के लिए भी जीना पड़ता है
और आग को जलाना
पानी को पीना
फल को खाना
लोटे को उठाना
और गिलास को ओठों से लगाना पड़ता है ,
तुम कहते हो
ईश्वर स्वयं सिद्ध है
उसे भी धरती पर आना पड़ता है
या आकाश में रहना पड़ता है
हवाओं को प्रेरित
सूर्य को प्रकाशित
और पर्वतों, जंगलों और
जाने कितने प्राणियों
वनस्पतियों को रवाना पड़ता है ,
सब लगे रहते हैं
जीवन का व्याकरण
कभी स्वयं सिद्ध नहीं होता।
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