Friday 28 February 2014

इच्छाएँ

छोटी-छोटी इच्छाएँ 
जीवन का प्रसंग 
अविरल घोरतम इच्छाएँ 
कुछ समाधान 
संतोष, नियति, ईश्वर की मरजी 
और संयोग। 
मैं पिछली कई शताब्दियों से 
बूढ़ी माँ की कहानियों 
और बड़े बुजुर्गों की हिदायतों में 
इन शब्दों को सुन रहा हूँ ,
मैं कुछ कर नहीं सकता 
इसका तात्पर्य 
मैं इसे स्वीकार करता हूँ ,
इन शब्दों पर 
किसी का राजी होना 
सत्य नहीं हो सकता 
कभी विद्रोह 
बिलकुल असफल नहीं होता। 
उठो मेरे भीतर इच्छाओं 
तुम्हारे कारण जीवित हूँ 
और लड़ो मेरी इच्छाओं 
सामने अभेद्य पर्वत हो तो भी क्या ,
कुछ तो हो कर रहेगा 
और कुछ न हुआ तो भी क्या 
तुम तो बचे रहोगे 
जीवित। 

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