कविता खटाई में पड़ जाती है
जब जिंदगी की जीभ पर
बहुत तीखी मिर्ची पड़ जाती है
जैसे पाँव के नीचे गन्दा पड़ जाने से
आदमी लगड़ाने लगता है
कविता हकलाने लगाती है।
प्रेम की नदियां समुद्र में नहीं पहुंचती
और देवता की जाति में न पैदा होने के कारण
अमृत मिल भी जाय
तो सिर और धड़ को अलग होना पड़ता है ,
कोई भी कविता
सच्चाई नहीं झेल सकती
क्यों कि वह आदमी नहीं होती
और होती भी है तो कुछ ज्यादा
या कम।
मेरे मित्रों
बहुत मुश्किल है
बहुत सी हालातों में कविता
संवाद का अवसर
शायद हमेशा नहीं होता
शब्द पर्याप्त नहीं होते
और होते भी हैं तो
इतने ज्यादे पर्याप्त हो जाते हैं कि
वह - वह नहीं बोलते
जो बोलना चाहिए ,
कविता भी एक स्वीकृत मुहावरे की तरह है
और जिंदगी पूरी की पूरी
कभी स्वीकृत नहीं होती।
जब जिंदगी की जीभ पर
बहुत तीखी मिर्ची पड़ जाती है
जैसे पाँव के नीचे गन्दा पड़ जाने से
आदमी लगड़ाने लगता है
कविता हकलाने लगाती है।
प्रेम की नदियां समुद्र में नहीं पहुंचती
और देवता की जाति में न पैदा होने के कारण
अमृत मिल भी जाय
तो सिर और धड़ को अलग होना पड़ता है ,
कोई भी कविता
सच्चाई नहीं झेल सकती
क्यों कि वह आदमी नहीं होती
और होती भी है तो कुछ ज्यादा
या कम।
मेरे मित्रों
बहुत मुश्किल है
बहुत सी हालातों में कविता
संवाद का अवसर
शायद हमेशा नहीं होता
शब्द पर्याप्त नहीं होते
और होते भी हैं तो
इतने ज्यादे पर्याप्त हो जाते हैं कि
वह - वह नहीं बोलते
जो बोलना चाहिए ,
कविता भी एक स्वीकृत मुहावरे की तरह है
और जिंदगी पूरी की पूरी
कभी स्वीकृत नहीं होती।
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