Sunday 16 February 2014

तीन मुक्तक

१ प्रेम :
पीठ पर नागिन लिटाए ,
जा रही है दूर हम से शाम.
आँख आंचल से बंधी है ,
और अधरों पर उसी का नाम.

२ पाती :
यह उदासी जेब में थी ,
हाथ में आई.
बांचने को मन हुआ ,
पर आँख भर आई.

३ चाँदनी 
चंचल मन चांदनी हजार नहीं होती है ,
आँखों में चितवन की धार नहीं होती है.
रूप के बटोही थे, साथ चले आए थे ,
वरना अब मौसमी बहार कहां होती है !

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