अनंत जी की कविताएँ
Sunday 16 February 2014
मित्र
ज्यादातर मित्र मिले
बिछड़ गये
वे अपने प्रभाव अंकित करते रहे
हम कागज की तरह छपते रहे
एक प्रेस की तरह जीवन
हमें एक पत्र की तरह निकालता रहा
हर एक दिन।
लोगों ने पढ़ा हमें
और जाना हमारे मित्रों को।
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