इस दौड़ से थके
तो रुके
दोनों आँखे बन्द हुई
तो तीसरा नेत्र खुल गया
कोई तरकीब नहीं थी
कविता में होने के अलावा
गो इतने से कविता नहीं थी पूरी
मैं ही था पूरा का पूरा।
असंख्य तो नहीं
गिनने का समय भी नहीं था
उठ रहे थे पकड़ने को मुझे अनेक हाथ
वे किसके थे
नहीं जानता
भागने का कोई उपाय नहीं था
हम कविता को ही पुकार सकते थें
पुकारा ,
कविता कहाँ आती है पास
शब्द आयें तो आयें
उनका काम है,यहाँ वहाँ भटकना
किसी के पास रहना
कुछ लोंग इस्तमाल के लिये होतें हैं।
अतः मुझे प्रकृति में भागना पड़ा
जैसी भी थी उप्लब्द्ध
कोई चारा नहीं नहीं था
कि मैं उसमें लीन हो जाऊँ
प्रकृति नहीं थी मेरी विश्राम स्थली
फिर भी मैं आखिर कहाँ जाऊँ
कहाँ सुस्ताऊँ ?
तो रुके
दोनों आँखे बन्द हुई
तो तीसरा नेत्र खुल गया
कोई तरकीब नहीं थी
कविता में होने के अलावा
गो इतने से कविता नहीं थी पूरी
मैं ही था पूरा का पूरा।
असंख्य तो नहीं
गिनने का समय भी नहीं था
उठ रहे थे पकड़ने को मुझे अनेक हाथ
वे किसके थे
नहीं जानता
भागने का कोई उपाय नहीं था
हम कविता को ही पुकार सकते थें
पुकारा ,
कविता कहाँ आती है पास
शब्द आयें तो आयें
उनका काम है,यहाँ वहाँ भटकना
किसी के पास रहना
कुछ लोंग इस्तमाल के लिये होतें हैं।
अतः मुझे प्रकृति में भागना पड़ा
जैसी भी थी उप्लब्द्ध
कोई चारा नहीं नहीं था
कि मैं उसमें लीन हो जाऊँ
प्रकृति नहीं थी मेरी विश्राम स्थली
फिर भी मैं आखिर कहाँ जाऊँ
कहाँ सुस्ताऊँ ?
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