सुनता हूँ एकांत में
दूर का सन्नाटा
कोई मणिधर जैसे बाँबी में प्रवेश कर रहा हो ,
प्राण खींचते जा रहे हैं
रात कुछ नहीं बोलती
किवाड़ों पर टंगे परदे
यूनान के संतो कि दाढ़ी की तरह हिलते हैं
यहाँ से वहाँ
समय का रथ घरघराता है
घोड़ो की टाप मुझे सुनाई देती है
साथी अनेक हैं
कोई मन पसंद
पर कौन मेरे साथ अपनी छाती पर पहाड़ रखे ,
कौन सुने यह सन्नाटा
जो शब्दों की सेना को मौत की नींद सुला देता है।
दूर का सन्नाटा
कोई मणिधर जैसे बाँबी में प्रवेश कर रहा हो ,
प्राण खींचते जा रहे हैं
रात कुछ नहीं बोलती
किवाड़ों पर टंगे परदे
यूनान के संतो कि दाढ़ी की तरह हिलते हैं
यहाँ से वहाँ
समय का रथ घरघराता है
घोड़ो की टाप मुझे सुनाई देती है
साथी अनेक हैं
कोई मन पसंद
पर कौन मेरे साथ अपनी छाती पर पहाड़ रखे ,
कौन सुने यह सन्नाटा
जो शब्दों की सेना को मौत की नींद सुला देता है।
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