उजले दीप जले
किसके सुन्दर अधर कोर पर
ये मुस्कान खिले
ये मुस्कान खिले
नयनों में आई दिवाली
स्नेह भरी भाई दिवाली
दीपक थाल संभाले आँचल
पायल झूम चले
उजले दीप जले
स्नेह भरी भाई दिवाली
दीपक थाल संभाले आँचल
पायल झूम चले
उजले दीप जले
झूम उठी आँगन की तुलसी
अंधकार की पाँखें झुलसीं
प्यारे-प्यारे गीत पिया के
रह-रह मचल चलें
उजले दीप जले
अंधकार की पाँखें झुलसीं
प्यारे-प्यारे गीत पिया के
रह-रह मचल चलें
उजले दीप जले
द्वार देख साजन परदेसी
आँसू उमड़ पड़े
उजले दीप जले
आँसू उमड़ पड़े
उजले दीप जले
अनंत मिश्र
गोरखपुर
गोरखपुर
(यह अधूरी कविता सन 1967-68 में कादंबनी में छपी थी पूरी याद भी नहीं है पर आप को समर्पित करता हूँ )
No comments:
Post a Comment