Sunday 2 February 2014

कथरी

वह चौराहे पर मिल गया 
हड़बड़ी में था 
उसके थैले में क्या था 
मैंने पूछा नही ,
उसने कहा 
दोस्त, बहुत मुश्किल में हूँ 
दाल अट्ठारह रुपये 
तेल छत्तीस रुपये 
आटा तीन रुपये 
तनख्वाह बारह सौ रुपये 
मकान भाड़ा चार सौ 
कैसे चलेगा ?
मैंने कहा मैं भी मुश्किल में हूँ 
तनख्वाह छः हजार रुपये 
इनकम टैक्स एक हजार रुपये 
बिमा, पी.एफ. कटौतियां 
हाथ में आता तीन हजार रुपये 
मकान भाड़ा एक हजार रुपये 
बचता दो हजार रुपये 
जीने का खर्च बढ़ा 
रुपये का मूल्य घटा ,
दोनों की कथरी खुली 
दोनों ने एक दूसरे के सामने 
अपना-अपना कम्बल झाड़ दिया,
हमने साथ-साथ चाय पिये 
पान खाये 
अलग-अलग दिशाओ में चले गये ,
क्या हम लोग कथरी सीते रहेंगे 
कौन है वो जो कालीन बिछाते हैं 
वे कौन सा धंधा अपनाते हैं। 

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