प्रिय जन जब बिछुड़ते हैं
जीवन के घर बाहर छोड़ जाते हैं
अपने अस्तित्व के टुकड़े
कभी आधा चेहरा
कभी कोई आधा अधूरा शरीर
राह में
घर में
दूकान में
कभी उनकी हँसी
कभी बालो की सेटिंग
कभी कोई तकिया कलाम ,
गैर सिलसिलेवार उनकी
स्मृति के खंड-खंड
चुप उदास करते जीवन की
छाया में घुल-मिल जाते हैं ,
मृत्यु को प्राप्त
आत्मीय मनुष्य
कितने वजनी हो जाते हैं
सोच कर डर भी लगता है ,पर साथ-साथ
होती है आत्मा के किसी कोने में
एक शाश्वत ख़ुशी कि
हमारे बाद भी लोग जियेंगे
और इसी तरह लोगो को याद करेंगे
मरने से पूर्व।
जीवन के घर बाहर छोड़ जाते हैं
अपने अस्तित्व के टुकड़े
कभी आधा चेहरा
कभी कोई आधा अधूरा शरीर
राह में
घर में
दूकान में
कभी उनकी हँसी
कभी बालो की सेटिंग
कभी कोई तकिया कलाम ,
गैर सिलसिलेवार उनकी
स्मृति के खंड-खंड
चुप उदास करते जीवन की
छाया में घुल-मिल जाते हैं ,
मृत्यु को प्राप्त
आत्मीय मनुष्य
कितने वजनी हो जाते हैं
सोच कर डर भी लगता है ,पर साथ-साथ
होती है आत्मा के किसी कोने में
एक शाश्वत ख़ुशी कि
हमारे बाद भी लोग जियेंगे
और इसी तरह लोगो को याद करेंगे
मरने से पूर्व।
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