Sunday 2 February 2014

प्रिय जन जब बिछुड़ते हैं

प्रिय जन जब बिछुड़ते हैं 
जीवन के घर बाहर छोड़ जाते हैं 
अपने अस्तित्व के टुकड़े 
कभी आधा चेहरा 
कभी कोई आधा अधूरा शरीर 
राह में 
घर में 
दूकान में 
कभी उनकी हँसी 
कभी बालो की सेटिंग 
कभी कोई तकिया कलाम ,
गैर सिलसिलेवार उनकी 
स्मृति के खंड-खंड 
चुप उदास करते जीवन की 
छाया में घुल-मिल जाते हैं ,
मृत्यु को प्राप्त 
आत्मीय मनुष्य 
कितने वजनी हो जाते हैं 
सोच कर डर भी लगता है ,पर साथ-साथ 
होती है आत्मा के किसी कोने में 
एक शाश्वत ख़ुशी कि 
हमारे बाद भी लोग जियेंगे 
और इसी तरह लोगो को याद करेंगे 
मरने से पूर्व। 

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