Sunday 2 February 2014

अहैतुक

दिए बिना रहा नही जाता 
सम्पूर्ण दिए बिना !
क्यों कि कुछ ही शेष रह जाय 
तो देना रस नही बनता 
कोई समूर्ण नही घटता !
जैसे बीज बिना मिटे नही बनता वृक्ष 
और वृक्ष बिना माहलाहित हुए 
नही बनता प्रसून !
वे स्वीकारे न स्वीकारे !
जो जानते हैं रहस्य जीवन का 
वे मिटेंगे सम्पूर्ण 
वृक्ष बनेंगे 
रंग विरंगे फूलों से सिलेंगे 
सृष्टि के नयनों की आगवानी 
हमेशा-हमेशा करेगें। 

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